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ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता विनोद कुमार शुक्ल

शुक्ल छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार होंगे जिन्हें साहित्य के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। वर्ष 2024 का 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार देश के प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को दिए जाने की घोषणा की गई है।

भारतीय ज्ञानपीठ के बयान के अनुसार शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनशीलता और अनूठी लेखन शैली के लिए इस सम्मान के लिए चुना गया है। वे इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले 12वें हिंदी साहित्यकार हैं। राजधानी में रहने वाले शुक्ल इस सम्मान से सम्मानित होने वाले छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है और जब विनोद कुमार शुक्ल को यह सम्मान मिला तो यह न केवल एक लेखक की उपलब्धि है, बल्कि हिंदी साहित्य की सरल, संवेदनशील और अभिनव धारा की जीत भी है। ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना न केवल उनकी लेखनी की उत्कृष्टता का सम्मान है, बल्कि यह हिंदी साहित्य की उस धारा की स्वीकृति भी है जो सरलता में गहराई खोजती है। यह सम्मान हमें याद दिलाता है कि महान साहित्य की पहचान केवल भारी विचारों से नहीं होती, बल्कि छोटे-छोटे जीवन के अनुभवों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति से भी होती है

प्रसिद्ध हिंदी लेखक विनोद कुमार शुक्ल ने उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा पर शनिवार को प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह पुरस्कार मिलेगा। जब उनसे पूछा गया कि ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा को वह किस तरह से लेते हैं, तो शुक्ल ने कहा कि यह भारत के लिए, साहित्य के लिए बहुत बड़ा पुरस्कार है। इतना बड़ा पुरस्कार पाना मेरे लिए खुशी की बात है। शुक्ला ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह पुरस्कार मिलेगा। शुक्ला ने कहा, मैं पुरस्कार पर ध्यान नहीं देता। अन्य लोग मेरा ध्यान आकर्षित करते हैं। दूसरे लोग मुझसे चर्चाओं में, बातचीत में कहते हैं कि अब आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना चाहिए, तो मैं संकोच में पड़ जाता हूँ और उन्हें उत्तर देने में असमर्थ हो जाता हूँ।

ज्ञानपीठ सम्मान – बिना किसी बनावटीपन के गहरे अर्थ को उजागर करता है। बयान के अनुसार, यह निर्णय प्रसिद्ध कथाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा रे की अध्यक्षता में वरिष्ठ परिषद की बैठक में लिया गया। बैठक में चयन समिति के अन्य सदस्यों में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रभा वर्मा और डॉ. अनामिका, डॉ. ए. कृष्ण राव, प्रफुल्ल शिलेदार, जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद शामिल थे।

ज्ञानपीठ पुरस्कार साहित्य का सर्वोच्च सम्मान- श्री शुक्ल को साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है। ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जो भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य लिखने वाले लेखकों को दिया जाता है। इस पुरस्कार के तहत 11 लाख रुपये की धनराशि, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। वर्ष 1961 में स्थापित ज्ञानपीठ पुरस्कार सर्वप्रथम मलयालम कवि जी. शंकर कुरुप को वर्ष 1965 में उनके कविता संग्रह ‘ओडक्कुझाल’ के लिए दिया गया था।

1971 में प्रकाशित हुई पहली कविता- लेखक, कवि और उपन्यासकार शुक्ल (88 वर्ष) ने पहली बार 1971 में ‘जयहिंद के आसपास’ शीर्षक से कविता प्रकाशित की थी। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं। उनकी लेखनी सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और अनूठी शैली के लिए जानी जाती है। वे मुख्य रूप से हिंदी साहित्य में अपने प्रयोगवादी लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। शुक्ल के उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मणि कौल ने 1999 में इसी नाम से फिल्म बनाई थी।

मुख्यमंत्री साय ने शुक्ल को दी बधाई- मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, उपन्यासकार और कवि विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्हें बधाई दी है। उन्होंने इसे छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का क्षण बताया और कहा कि श्री शुक्ल ने छत्तीसगढ़ को भारत के साहित्यिक मानचित्र पर गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि ज्ञानपीठ जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित होना न केवल उनकी रचनात्मकता की पहचान है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक और साहित्यिक गौरव की भी पहचान है।

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