शरीर की इंद्रियां

प्रेरणा | Motivation: एक दिन शरीर की इंद्रियों ने सोचा कि हम लोग परिश्रम करते-करते मर जाते हैं और यह पेट हमारी कमाई को मुफ्त में ही खाता रहता है। अब से हम कमाएँगे तो हम ही खाएँगे अन्यथा काम करना बंद कर देंगे। इस सुझाव पर सबने सर्वसम्मति से हाँ भरी। पेट को इस प्रस्ताव का पता चलने पर उसने सभी इंद्रियों को बुलाकर समझाया – “मैं तुम्हारी कमाई स्वयं नहीं रखता हूँ। जो कुछ तुम देते हो, उसे तुम्हारी शक्ति बढ़ाने के लिए वापस तुम्हारे पास भेज देता हूँ। विश्वास रखो, तुम्हारा परिश्रम तुम्हें वापस मिल जाता है।” परंतु यह बात किसी इंद्रिय को समझ में नहीं आई। प्रस्ताव के अनुसार सभी इंद्रियों ने कार्य करना बंद कर दिया।पेट क्षुधा से तड़पने लगा तो वह अन्य अंगों को ऊर्जा दे पाने में भी असमर्थ रहा।
परिणामस्वरूप सारे अंगों की शक्ति नष्ट होने लगी। इस स्थिति से सारे अंग घबराए। तब मस्तिष्क ने इंद्रियों से कहा- “मूर्खा! तुम्हारा परिश्रम कोई नहीं खा जाता। वह लौटकर तुम्हें ही वापस मिलता है। यह न सोचो कि दूसरों की सेवा करके तुम्हारा नुकसान होता है, वस्तुतः जो कुछ तुम दूसरों को देते हो, वह ब्याजसहित तुम्हारे पास वापस लौट आता है।” अब इंद्रियों को सहकार और सहयोग की वास्तविकता समझ में आ गई। उन्होंने पुनः कार्य करना प्रारंभ कर – दिया। वस्तुस्थिति किसी कार्य की सफलता का श्रेय किसी एक को क्यों न मिले, – वह संभव सामूहिक पुरुषार्थ से ही होता है।
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