लाइफ स्टाइल

कमर दर्द का योगिक निदान

पीठ के निचले भाग में दरद की समस्या, जिसे कमर दरद (लो बैक पेन) के नाम से जाना जाता है, यह एक गंभीर और कभी-कभी प्राणघातक सिद्ध होने वाली समस्या है।

लाइफस्टाइल : ऐसा समझा जाता है कि कमर दरद की समस्या विशेषकर वृद्धावस्था में उत्पन्न होती है, परंतु वास्तविकता यह है कि यह किसी भी उम्र में अलग-अलग कारणों से उत्पन्न हो जाती है। दरद का लंबे समय तक अथवा निरंतर बने रहना अत्यंत कष्टकारक होता है।इसके समाधान के लिए सही कारणों का निदान एवं उचित उपचार प्रक्रिया का चयन आवश्यक होता है। वस्तुतः कमरदरद का कारण रीढ़ के निचले भाग तथा उसको सहारा देने वाली मांसपेशियों, ऊतकों आदि में तनाव, चोट या दबाव होता है। इसकी वजह शारीरिक और मानसिक दोनों हो सकती है।रीढ़ का निम्न भाग ही शरीर का अधिक भार उठाता है। किसी कार्य को करते समय, झुकते मुड़ते हुए, भार उठाते हुए या बैठे हुए – शरीर का अधिकतम भार रीढ़ के निचले भाग अर्थात कमर के हिस्से पर होता है। लगातार यहाँ के हिस्से की मांसपेशियों और लिगामेंट्स पर दबाव पड़ता रहता है, जिससे कई बार इस स्थान पर चोट या खिंचाव हो जाता है और दरद उत्पन्न हो जाता है।

गलत तरह से बैठने, लंबे समय तक बैठने अथवा बाहरी चोट लगने से भी स्लिप डिस्क की समस्या हो जाती है। कैल्सियम, विटामिन्स आदि की कमी, रूमेटायड आर्थराइटिस, कशेरुकाओं की बीमारी, गलत तरीके से बैठना, फोन, टैब, कंप्यूटर आदि पर एक ही स्थिति में लगातार बैठना, पीठ का कैंसर व अन्य कोई गंभीर बीमारी, रीढ़ में संक्रमण, बड़ी आँत में सूजन, अधिक वजन, गलत खान-पान, सोने का गलत तरीका, मानसिक तनाव, अवसाद, नशा जैसे अनेकों ऐसे कारण हैं, जो कमर दरद को उत्पन्न करते हैं। आयुर्वेद में कमर दरद का कारण वात और कफ संबंधी दोषों को माना जाता है।कमर दरद के उपचार के लिए एलोपैथी में दरदनिवारक, स्टेराइड्स युक्त औषधि, ऑपरेशन आदि अनेक उपायों को प्रयुक्त किया जाता है, परंतु समुचित समाधान के मिलने की सुनिश्चितता नहीं होती, साथ ही ऐसे उपचार के दुष्प्रभावों के रूप में कई बार गंभीर परिणाम भी सामने आते हैं। अतः आधुनिक समय में कमर दरद की बढ़ती गंभीरता और इसके समुचित-संतुलित व सुरक्षित उपचार व प्रबंधन के उपायों-तकनीकों को खोजा जाना अत्यंत आवश्यक है।

इस दिशा में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मानव चेतना एवं योग विज्ञान विभाग के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण शोधकार्य संपन्न किया गया है। इस शोध में योग चिकित्सा के माध्यम से विभिन्न शारीरिक व मानसिक कारणों से उत्पन्न कमर दरद के समुचित प्रबंधन की तकनीकों को खोजने का सार्थक प्रयास किया गया है।चूँकि योग अध्यात्म-साधना की एक सर्वोत्कृष्ट विधा होने के साथ-साथ एक समग्र चिकित्सा विज्ञान भी है, इसलिए इस शोध में योग चिकित्सा के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए कमर दरद के समुचित एवं समग्र समाधान के उपाय के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।यह शोधकार्य सन् 2012 में शोधार्थी पारुल अग्रवाल द्वारा श्रद्धेय कुलाधिपति डॉ० प्रणव पण्ड्या जी के विशेष संरक्षण एवं डॉ० ए० के० दत्ता जी के कुशल निर्देशन में संपन्न किया गया है।

इस महत्त्वपूर्ण शोध अध्ययन का विषय है- ‘यौगिक मैनेजमेन्ट ऑफ लो बैक पेन।”वैज्ञानिक एवं प्रायोगिक विधि पर आधृत इस शोध अध्ययन के प्रयोग के लिए शोधार्थी द्वारा – उत्तर प्रदेश के बरेली शहर स्थित ‘शील अस्पताल’ ● एवं ‘मिथिला अस्पताल’ से कमर दरद के 100 • मरीजों का चयन किया, जिनकी उम्र 30 से 55 वर्ष – के मध्य थी। महिला-पुरुष का अनुपात समान – रखा गया (50 महिला मरीज एवं 50 पुरुष मरीज)। – प्रयोग प्रारंभ करने से पूर्व सभी चयनित मरीजों का – स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। परीक्षण में जो मानदंड – अपनाए गए; वे हैं- (1) ब्लड शुगर, (2) सिरम – यूरिक एसिड, (3) एस० एल० आर० लेवल, – (4) रुटीन एंड माइक्रोस्कोपिक यूरिन टेस्ट, (5) एक्स-रे।परीक्षण के उपरांत एक माह की अवधि तक नियमित एक घंटा शोधार्थी द्वारा प्रायोगिक समूह के मरीजों को योगाभ्यास कराया गया। योगाभ्यास – के अंतर्गत जिन तकनीकों को सम्मिलित किया – गया; वे हैं-(1) सूक्ष्म व्यायाम – 10 मिनट(2) आसन – अर्द्धशलभासन, मकरासन, – भुजंगासन, ताड़ासन-20 मिनट(3) प्राणायाम-नाड़ीशोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम – 20 मिनट (4) ओम उच्चारण – १० मिनट |

इसके अतिरिक्त कुछ समय यथास्थिति टहलने के लिए कहा गया। प्रयोग की अवधि पूर्ण होने पर पुनः सभी का पूर्व की भाँति स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। दोनों परीक्षणों से प्राप्त आँकड़ों का वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीय रीति से विश्लेषण करने पर शोधार्थी ने यह पाया कि चयनित योगाभ्यास का कमर दरद की समस्या पर सार्थक एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा समस्या को उत्पन्न करने वाले कारणों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।उल्लेखनीय है कि इस शोध अध्ययन में शोधार्थी को जो सार्थक और सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं, इसका मुख्य कारण योग चिकित्सा के अंतर्गत सम्मिलित की गई विशिष्ट यौगिक तकनीकें हैं। अध्ययन में प्रयुक्त सभी तकनीकें स्वतंत्र रूप से अत्यंत विशिष्ट और संपूर्ण स्वास्थ्य एवं व्यक्तित्व पर सार्थक प्रभाव डालने वाली हैं। इस शोध में चयनित कमर दरद के उपचार एवं प्रबंधन में इन यौगिक विधियों की भूमिका और प्रभाव का तथ्यात्मक विवेचन किया गया है।अध्ययन में सम्मिलित प्रथम यौगिक तकनीक है- सूक्ष्म व्यायाम। यह शरीर के जोड़ स्थान को मजबूत बनाने वाला अभ्यास है।

इसमें श्वसन के माध्यम से आंतरिक अंगों के प्रति सजगता उत्पन्न होती है, जिससे किसी स्थान विशेष की समस्या का सही से उपचार या समाधान प्राप्त करने में सहायता मिलती है। यह शरीर के जोड़ों में लचीलापन उत्पन्न करने तथा जकड़न व खिंचाव को कम करने के लिए एक अत्यंत प्रभावकारी तकनीक है।(फिजियोथैरेपी चिकित्सा में भी इस तकनीक का व्यापक प्रयोग किया जाता है। इस अध्ययन में सूक्ष्म व्यायाम के अंतर्गत कटि प्रदेश, कमर आदि शरीर के निचले भाग से संबंधित अभ्यासों को प्रमुखता दी गई है। प्रयोग में पवनमुक्तासन, तितलीआसन जैसी विशिष्ट सूक्ष्म व्यायाम की क्रियाओं को सम्मिलित रखा गया है।-दूसरी यौगिक तकनीक आसन की है। अलग-अलग आसनों का शरीर एवं मन की समस्याओं एवं क्षमताओं पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ता है।इस प्रयोग में कमर दरद के समाधान में सहायक आसन समूह का चयन किया गया है, जैसे-अर्द्धशलभासन। यह आसन हाथों, जाँघों, – पैरों और पिंडलियों को एक साथ प्रभावित कर – स्वास्थ्य एवं सुदृढ़ता प्रदान करता है। पेट की चर्बी – को कम करने तथा कमर दरद में यह अत्यंत • प्रभावकारी माना गया है।इसके नियमित अभ्यास से रीढ़ की हड्डी में – मजबूती आती है व लचीलापन उत्पन्न होता है, – जिसका सीधा असर कमर दरद के कारणों का – समाधान करने के रूप में दिखाई देता है। इसके – बाद मकरासन का क्रम है।

मकरासन का तात्पर्य है – नदी में मगरमच्छ के शांत लेटे रहने की अवस्था। – इस आसन की यही मुद्रा है। इसमें आँख बंद कर – श्वास-प्रश्वास पर ध्यान करते हुए शरीर व मन को – बिलकुल शांत रखने का अभ्यास किया जाता है।यह तनाव, अवसाद, बेचैनी व मांसपेशियों से जुड़ी समस्याओं के उपचार में अत्यंत प्रभावकारी माना गया है। स्लिप डिस्क और साइटिका-दोनों समस्याओं में यह आसन समान रूप से लाभकारी • सिद्ध होता है।अगले क्रम में सम्मिलित आसन है-भुजंगासन। इस आसन के नियमित अभ्यास से रीढ़ में मजबूती और पीठ की मांसपेशियों में लचीलापन आता है। चिंता, तनाव व अवसाद को कम करने वाले ग्रंथि संस्थान पर भी यह सकारात्मक प्रभाव डालता है। आसन समूह का अंतिम आसन ताड़ासन है।इस आसन से समस्त अंगों की मांसपेशियों में लचीलापन आता है। गलत तरह से सोने अथवा बैठने से उत्पन्न समस्याओं; जैसे पीठ दरद, कमर दरद आदि में यह अत्यंत प्रभावकारी अभ्यास सिद्ध होता है।

शरीर को ऊपर की ओर खींचने से कमर पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव ऊपर की ओर खिंच जाता है, जिससे दरद में काफी राहत मिलती है। इससे यह आसन शारीरिक और मानसिक संतुलन भी प्रदान करता है।शोध अध्ययन की तृतीय यौगिक तकनीक प्राणायाम है। इस प्रयोग में नाड़ीशोधन एवं भ्रामरी प्राणायाम को सम्मिलित किया गया है। नाड़ीशोधन प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य शरीर के समस्त नाड़ी तंत्र को स्वस्थ व सुचारु बनाना है। इसका नियमित अभ्यास शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन बनाए रखने में सहयोगी होता है।चूँकि यह एक श्वास-प्रश्वास के अभ्यास की तकनीक है, अतः फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क के स्नायुओं पर तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मन को शांत व एकाग्र रखने तथा क्रोध, तनाव, चिंता, अवसाद आदि मानसिक विकारों के स्तर को कम करने में भी यह अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध होता है।इन्हीं विशेषताओं के कारण यह कमर दरद के उपचार में भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगला प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम है। इसमें भौरे की गुंजन जैसी आवाज करते हुए प्रश्वास की क्रिया करनी होती है।

इसका अभ्यास शारीरिक थकान व मानसिक तनाव – दोनों स्थितियों में समान रूप से लाभ प्रदान करता है। रक्त-परिसंचरण तंत्र को मजबूत बनाने तथा मानसिक शांति व स्थिरत की प्राप्ति के लिए यह एक उपयोगी तकनीक है।यौगिक तकनीकों में सम्मिलित अंतिम सोपाना है-ओउम्-साधना। ओउम् ध्यान को मंत्र-साधना भी कहा जाता है। इस ध्यान-विधि से रक्त परिसंचरण नियमितता, रीढ़ के सहयोगी तंत्र में संतुलन व मजबूती तथा गहरी मानसिक एकाग्रता प्राप्त होती है। यह तनाव को दूर करने में भी अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है।यौगिक साधना के क्षेत्र में इसे शरीर व मन * की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की एक प्रभावी तकनीक के रूप में माना जाता है। इन यौगिक तकनीकों के साथ पैदल चलने को भी कमर दरद के उपचार में एक महत्त्वपूर्ण तकनीक के रूप में* सम्मिलित किया गया है।वैसे टहलना स्वयं में एक संपूर्ण व्यायाम * है और इसके शारीरिक व मानसिक लाभों से सभी परिचित हैं, परंतु कमर दरद के यौगिक प्रबंधन में इसे आवश्यक मानते हुए निर्देशित किया गया है यदि नियमित न टहल पाने की स्थिति हो तब भी मरीज को सप्ताह में न्यूनतमतीन घंटे की अवधि तो पैदल चलने में लगानी ही चाहिए।

इस शोध अध्ययन में उक्त सभी यौगिक तकनीकों को शोधार्थी द्वारा यौगिक चिकित्सा के रूप में कमर दरद के उपचार का सार्थक व समग्र उपाय खोजने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। योग चिकित्सा का प्रभाव समग्र जीवन पर पड़ता है।इसकी तकनीकों का अभ्यास न केवल समस्या के समाधान तक सीमित रहता है, अपितु यह अभ्यासकर्ता के संपूर्ण व्यक्तित्व को बाह्य एवं आंतरिक रूप से ऊर्जावान बनाता है एवं आरोग्य प्रदान करता है।इसके अतिरिक्त इस चिकित्सा के आध्यात्मिक लाभ भी स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं। यह शोध भी योग विज्ञान की इन्हीं विशेषताओं के आधार पर कमर दरद जैसी गंभीर समस्या का समुचित समाधान प्रस्तुत करता है।

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