सिक्खों के गुरु संत गोविंदसिंह

प्रेरणा | Motivation: सिक्खों के गुरु संत गोविंदसिंह अपने दरबार में बैठे थे, तभी दो दूत भागते हुए उनके सम्मुख पहुँचे। उनको चिंतित देख गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा -“चिंता न करो। शांत होकर बताओ कि क्या हुआ है ?” दूत रोते हुए बोले – “महाराज ! सरहिंद के नवाब ने दुर्ग पर कब्जा कर लिया है। सरदार जोरावर सिंह और सरदार फतेह सिंह नहीं रहे।” यह सुनते ही दरबार में सन्नाटा छा गया, किंतु गुरु गोविंद सिंह शांत भाव से बोले- “यह बताओ कि उन्हें वीर की मृत्यु मिली या कायर की ?” दूत बोले-“महाराज ! वे दोनों अंतिम साँस तक प्राणपण से लड़े।”
सरहिंद के नवाब ने उन्हें कैद कर लिया और उनसे बोला कि यदि तुम इसलाम कबूल कर लोगे तो तुम्हें जिंदा छोड़ देंगे और इस दुर्ग का नवाब बना देंगे। परंतु दोनों सरदारों ने मृत्युधर्म स्वीकारना ही उचित समझा तथा हँसते-हँसते प्राण गँवा दिए।” गुरु गोविंद सिंह बोले- “फिर उन्हें वीरों की नहीं, महावीरों की मृत्यु मिली है। धर्म की रक्षा करते हुए प्राण त्यागने वाले अपना नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाते हैं। उनकी मृत्यु पर शोक करना तो उनकी शहादत का अपमान है।” दूतों सहित सारे दरबार के चेहरे से विषाद की रेखा हट गई और वीरता का – अभिमान छलक उठा।
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