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छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास – आद्य ऐतिहासिक काल

आद्य ऐतिहासिक काल ( Protohistoric period) इस काल का समय लगभग 2300 से 1750 ई.पू. है। इसके अन्तर्गत सिन्धु घाटी सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता/काँस्ययुगीन सभ्यता को शामिल किया जाता है, किन्तु इस सभ्यता के साक्ष्य छत्तीसगढ़ में नहीं मिले हैं।

वैदिककाल(Vedic Period)- वैदिककाल में मुख्य स्रोत वेद व अन्य वैदिक ग्रन्थ हैं। इस काल को मुख्य रूप से दो भागों ऋग्वैदिक काल व उत्तर वैदिककाल में विभाजित किया गया है। ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई. पू.) में छत्तीसगढ़ से सम्बन्धित किसी भी प्रकार का विवरण नहीं मिलता है।उत्तर वैदिककाल (1000-600 ई. पू.) में ऐसा माना जाता है कि इस काल में आर्यों का प्रसार छत्तीसगढ़ में होने लगा था। शतपथ ब्राह्मण में पूर्व एवं पश्चिम में स्थित समुद्रों का उल्लेख मिलता है। कौषितिकीय उपनिषद् में विन्ध्य पर्वत का उल्लेख प्राप्त होता है। उत्तर वैदिक साहित्य में नर्मदा नदी का उल्लेख रेवा नदी के रूप में मिलता है।

रामायण काल – इस काल में छत्तीसगढ़ का नाम दक्षिण कोसल था तथा इसकी राजधानी कुशस्थली थी। इस समय दक्षिण कोसल की भाषा कोसली थी। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार, दक्षिण कोसल के राजा भानुमन्त की पुत्री कौशल्या का विवाह उत्तर कोसल के राजा दशरथ से हुआ था। इस प्रकार छत्तीसगढ़ श्रीराम का ननिहाल माना जाता है।कोसल प्रदेश का नामकरण राजा भानुवन्त के पिता महाकोसल के नाम से हुआ माना जाता है। इस काल में बस्तर का नाम दण्डकारण्य था।राज्य में रामायणकालीन प्रमुख स्थल सरगुजा (रामगढ़, सीता बेंगरा, लक्ष्मण बेंगरा), शिवरीनारायण (शबरी का निवास स्थल), तुरतुरिया वाल्मिकी आश्रम (लव-कुश का जन्म स्थान), सिहावा पर्वत, पंचवटी (सीता का अपहरण क्षेत्र) व दण्डकारण्य (राम के वनवास का एक प्रमुख क्षेत्र) हैं।

महाभारत काल – इस काल में छत्तीसगढ़ का नामप्राक्‌कोसल था तथा बस्तर के अरण्य क्षेत्र को कान्तार कहा जाता था।• इस काल में महासमुन्द जिले में सिरपुर (प्राचीन नाम चित्रागंदापुर) अर्जुन के पुत्र भब्रुवाहन की राजधानी थी।• राज्य में महाभारतकालीन प्रमुख स्थल सिरपुर, रतनपुर, खल्लारी व आरंग हैं।

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