छत्तीसगढ़ का मध्यकालीन इतिहास
छत्तीसगढ़ राज्य का मध्यकालीन इतिहास कल्चुरियों से प्रारम्भ होता है। मध्यकालीन छत्तीसगढ़ में कल्चुरियों के अतिरिक्त फणिनाग वंश, सोमवंश, छिन्दकनागवंश व काकतीय वंश ने शासन किया।

कल्चुरि वंश- छत्तीसगढ़ का कल्चुरि वंश त्रिपुरी के कल्चुरियों का अंश था। राज्य में इस वंश की स्थापना 1000 ई. में हुई थी और उन्होंने राज्य में लगभग 1741 ई. तक शासन किया। यह छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक लम्बे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।कल्चुरि वंश का संस्थापक वामराज देव था तथा छत्तीसगढ़ में इसका वास्तविक संस्थापक कलिंगराज था।छत्तीसगढ़ में शासन के समय कल्चुरि वंश दो शाखाओं रतनपुर और रायपुर में विभक्त था।इन शाखाओं का विवरण इस प्रकार है
रतनपुर के कल्चुरि वंश – रतनपुर की शाखा की स्थापना दक्षिण कोशल में कलिंगराज ने की थी, जो कोकल्लदेव द्वितीय का पुत्र था।कलिंगराज एवं कमलराज के समय में लगभग 11वीं शताब्दी तक सम्पूर्ण दक्षिण के कोसल क्षेत्र में कल्चुरियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया था।कल्चुरियों की रतनपुर शाखा के प्रमुख शासकों का विवरण निम्न है –
कलिंगराज इसका शासनकाल 1000 से 1020 ई. के मध्य था। इसने तुम्माण को अपनी राजधानी बनाया तथा यहीं पर महिषासुर मर्दिनी मन्दिर का निर्माण कराया। कलिंगराज के पराक्रम का वर्णन पृथ्वीदेव प्रथम के आमोदा ताम्रपत्र से प्राप्त होता है।
कमलराज इसका शासनकाल 1020 से 1045 ई. के मध्य था। यह कलिंगराज का उत्तराधिकारी था। इसने त्रिपुरी के राजा गंगदेव को उड़ीसा अभियान में सहायता प्रदान की थी।
रत्नदेव प्रथम इसका शासनकाल 1045 से 1065 ई. के मध्य था। इसने 1050 ई. में रतनपुर नगर की स्थापना की। इसने अपनी राजधानी तुम्माण से रतनपुर स्थानान्तरित की। इसने रतनपुर में महामाया मन्दिर बनवाया तथा रतनपुर को तालाबों की नगरी के रूप में प्रसिद्ध किया। इसके शासनकाल में रतनपुर को कुबेरपुर की संज्ञा दी गई।
पृथ्वीदेव प्रथम इसका शासनकाल 1065 से 1095 ई. के मध्य था। इन्होंने सकल कोशलाधिपति तथा प्रचण्ड कोसलाधिपति की उपाधि धारण की। इसने रतनपुर के विशाल तालाब का निर्माण व तुम्माण में पृथ्वीदेवेश्वर सिंह मन्दिर का निर्माण कराया था।
जाजल्यदेव प्रथम इसका शासनकाल 1095 से 1120 ई. के मध्य था। इसने गजशार्दूल (हाथियों का शिकारी) की उपाधि धारण की। इसने नागवंशी शासक सोमेश्वरदेव को पराजित कर सपरिवार बन्दी बनाया। इसने जाजल्यदेव नगर (वर्तमान जांजगीर) की स्थापना की तथा पाली के शिव मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया, जो आज भी सुरक्षित है। इसने त्रिपुरी के कल्चुरियों की अधीनता को स्वीकार करते हुए अपने स्वर्ण सिक्कों पर श्रीमद् जाजल्य देव एवं गजशार्दूल अंकित कराया था।
रत्नदेव द्वितीय इसका शासनकाल 1120 से 1135 ई. के मध्य था। इसने गंगवंशीय शासक अनन्तवर्मन चोड गंग्य को हराया। इसके द्वारा त्रिपुरी के कल्चुरियों की अधीनता को अस्वीकार कर दिया गया। इसने सोने व चाँदी के सिक्के जारी किए।
पृथ्वीदेव द्वितीय इनका शासनकाल 1135 से 1165 ई. के मध्य था। कल्चुरियों का सर्वाधिक विस्तृत साम्राज्य इसी के काल में हुआ। चाँदी के सबसे छोटे सिक्के इसी के द्वारा जारी किए गए थे। कल्चुरि शासकों के प्राप्त अभिलेखों में सबसे अधिक अभिलेख इसी के हैं। राजिम शिलालेख इसी से सम्बन्धित है।
जाजल्यदेव द्वितीय इसका शासनकाल 1165 से 1168 ई. के मध्य था। मल्हार शिलालेख के अनुसार त्रिपुरी के शासक जयसिंह ने रतनपुर पर आक्रमण किया जो असफल रहा।
रत्नदेव तृतीय इसका शासनकाल 1178 से 1198 ई. के मध्य था। इसने रतनपुर में लखनी देवी मन्दिर का निर्माण कराया।
प्रतापमल्ल इसका शासनकाल 1198 से 1222 ई. के मध्य था। इनके द्वारा चक्राकार तथा षट्कोणाकार ताँबे के सिक्के चलाए गए, जिन पर सिंह कटार की आकृति अंकित थी। प्रतापमल्ल के बाद लगभग 250 वर्षों तक शासनकाल की जानकारी नहीं मिलती, जिसे अन्धकारयुग की संज्ञा दी जाती है।
बाहरेन्द्रसाय इसका शासनकाल 1480 से 1544 ई. के मध्य था। इसने रतनपुर के स्थान पर छुरी कोसगई (कोरबा) को अपनी राजधानी बनाया तथा इसने कोसगई मन्दिर व चैतुरगढ़ के किले का निर्माण कराया।
कल्याणसाय इसका शासनकाल 1544 से 1581 ई. के मध्य था। यह मुगल सम्राट अकबर के समकालीन था। यह जहाँगीर के दरबार में 8 वर्षों तक दिल्ली में रहा। इसने राजस्व की जमाबन्दी प्रणाली प्रारम्भ की। इसी प्रणाली के आधार पर ब्रिटिश अधिकारी चिस्म ने छत्तीसगढ़ को 36 गढ़ों में बाँट दिया था।
लक्ष्मणसाय इसके द्वारा 1563 ई. में देशबही खाते की शुरुआत के साथ ही लेखा-जोखा बजट प्रणाली की शुरुआत की गई।
रघुनाथ सिंह इसका शासनकाल 1732 से 1741 ई. के मध्य था। यह कल्चुरियों का अन्तिम शासक एवं मराठों के अधीन प्रथम शासक था। 1741 ई. में इसके समय में मराठाओं का आक्रमण हुआ और इसने बिना युद्ध के आत्मसमर्पण कर दिया। इसके पश्चात् मोहन सिंह (1742 से 1745 ई.) शासक बना, जो मराठों के अधीन अन्तिम कल्चुरि शासक था।
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