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छत्तीसगढ़ में रायपुर के कल्चुरि वंश : cgpsc एग्जाम के लिए

छत्तीसगढ़ में रायपुर के कल्चुरि वंश : रायपुर के कल्चुरि वंश (लहुरी शाखा)14वीं शताब्दी के अन्त में रतनपुर के कल्चुरि वंश की एक शाखा रायपुर में स्थापित हुई। कनिंघम के अनुसार इस शाखा का संस्थापक सम्भवतःकेशवदेव था।इस वंश की प्रथम राजधानी खल्लवाटिका (खल्लारी) थी व इनकी कुल देवी गजलक्ष्मी थी। कल्चुरियों की रायपुर शाखा के प्रमुख शासक निम्न प्रकार हैं

रामचन्द्रदेव- इसका शासनकाल 1380 ई. से 1400 ई. के मध्य था। इसने रायपुर शहर की स्थापना की तथा नागवंशी शासक भाणिगदेव को पराजित किया था।

ब्रह्मदेव – इसका शासनकाल 1400 ई. से 1420 ई. के मध्य था। इसने 1409 ई. में रायपुर को अपनी राजधानी बनाया। इसके दो शिलालेख रायपुर तथा खल्लारी से प्राप्त हुए हैं। रायपुर में दूधाधारी मठ तथा महासमुन्द में खल्लारी देवी के मन्दिर का निर्माण इसी के समय में हुआ था।

अमर सिंह – इसका शासनकाल 1741 ई. से 1753 ई. के मध्य था। इस वंश का अन्तिम शासक अमर सिंह था, जिसके बाद 1750 ई. तक इस क्षेत्र में मराठों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

कल्चुरिकालीन शासन व्यवस्था– राज्य में कल्चुरि शासन प्रबन्ध निम्न प्रकार था

प्रशासनिक व्यवस्था – कल्चुरि प्रशासन राजतन्त्रात्मक था तथा इसके प्रशासन में राजा को आमात्यों की सहायता प्राप्त थी।प्रशासन की सुविधा के लिए कल्चुरियों द्वारा अनेक प्रशासनिक इकाइयों का गठन किया गया।मण्डल प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई थी। इसके प्रमुख को महामण्डलेश्वर कहा जाता था।मण्डल से निचले स्तर पर गढ़ (84 गाँवों का समूह) होता था, इसका प्रमुख दीवान कहलाता था। गढ़ से निचले स्तर पर बरहों (12 गाँवों का समूह) था, जिसका प्रमुख दाऊ कहलाता था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जिसका प्रमुख गौटिया कहलाता था।स्थानीय प्रशासन के लिए पंचकुल संस्था का गठन किया गया था।

राजा के अधिकारीगण- राज्य के कार्यों के संचालन एवं प्रबन्ध हेतु राजा को योग्य एवं विश्वत सलाहकारों एवं अधिकारियों की आवश्यकता होती थी।राज्य के प्रमुख अधिकारी गणों का विवरण निम्न प्रकार है

आय के स्रोत – इनकी आय का प्रमुख स्रोत भूमि कर था। इसके अतिरिक्त नमक कर, नदी घाट कर तथा पशुओं की खरीद-बिक्री कर प्रमुख थे।

युद्ध एवं प्रतिरक्षा विभाग – हाथी, घोड़े, रथ, पैदल चतुरंगिणी सेना का संगठन अलग-अलग अधिकारी के हाथ में रहता था। सेना का सर्वोच्च अधिकारी सेनापति, साधनिक या महासेनापति कहलाता था।हस्तिसेना का प्रमुख महापीलुपति तथा अश्वसेना का प्रमुख महाश्वसाधनिक कहलाता था।

पुलिस प्रबन्धन – कानून एवं शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष प्रबन्ध था। सर्वोच्च पुलिस अधिकारी दण्डपाशिक, चोरों को पकड़ने वाला अधिकारी दुष्ट-साधक, सम्पत्ति रक्षा के निमित्त पुलिस और नगरों में सैनिक नियुक्त किए गए थे।

स्थानीय प्रशासन- नगर के प्रमुख को पुरप्रधान तथा ग्राम प्रमुख को ग्रामकुट या ग्राम भोगिक कहा जाता था।

कल्चुरियों की सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति- कल्चुरिकालीन छत्तीसगढ़ में नागरिकों के जीवन का स्तर उच्च कोटि का था। इस समय तक वर्ण व्यवस्था को समाज में स्थान प्राप्त हो चुका था, किन्तु वह (वर्ण व्यवस्था) कठोर नहीं थी।छत्तीसगढ़ के कल्चुरि लेखों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का उल्लेख मिलता है, किन्तु शूद्र का उल्लेख नहीं है।कल्चुरि शासनकाल में छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति समृद्ध थी। कृषि, वनोपज, खनिज आय के प्रमुख स्रोत थे। कुटीर उद्योग, वाणिज्य कर एवं यातायात के साधनों का विकास भी इसी काल में प्रारम्भ होता है।कल्चुरि शासन में विभिन्न प्रकार के वजन व माप प्रचलित थे। मुद्रा में मुख्य रूप से कौडी, गण्डा, कोरी व दागोनी प्रचलित थी एवं मापन के लिए सेरी व पंसेरी पद्धति प्रचलित थी।छत्तीसगढ़ के कल्चुरि शासक धर्मनिरपेक्ष थे। इन्होंने अपने शासनकाल में शैव, वैष्णव, जैन एवं बौद्ध धर्मों को संरक्षण ही प्रदान नहीं किया था, अपितु उन्हें पुष्पित-पल्लवित भी किया। वे स्वयं शैवोपासक भी थे।छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म छत्तीसगढ़ में स्थापित हो चुका था। राजधानी सिरपुर इसका प्रमुख केन्द्र था, किन्तु कल्चुरि काल में इसके पतन की सम्भावनाएँ दृष्टिगत होने लगी थीं।

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