जय और विजय की प्रेरणादायक कहानी

जय और विजय विधाता के सबसे निकटवर्ती पार्षद थे। एक बार विधाता ने उन दोनों – को धरती पर भेजा और उनको आदेश दिया कि वे यह पता लगाकर आएँ कि धरती पर स्वर्ग का सच्चा अधिकारी कौन है? जय और विजय धरती पर उतरकर आए और वेश बदलकर उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी का परिभ्रमण किया।उन्होंने देखा कि लोग स्वर्गप्राप्ति के लिए भाँति-भाँति के कर्मकांडों में लीन हैं। एक = दिन वे भ्रमण करते हुए एक गाँव में पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि रात्रि के समय एक अंधा – व्यक्ति अपने समीप एक दीपक रखकर बैठा है।
जय-विजय उसके पास पहुँचकर उससे – बोले- “क्यों बाबा ? तुम्हें तो दिखाई नहीं पड़ता, फिर यह दीपक किसके लिए जलाया – हुआ है ?”उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- ” श्रीमान ! मैं भले से ही न देख पाता हूँ, पर जो देख पाते हैं, वे तो इसके प्रकाश से सही मार्ग का अनुसरण कर सकते हैं।” जय-विजय ने पुनः पूछा- “क्या तुम कोई उपासना नहीं करते ? तुम्हें स्वर्ग नहीं जाना ?”वृद्ध ने उत्तर दिया – “उपासना क्या होती है, स्वर्ग किसे कहते हैं, मुझे नहीं मालूम। मैं तो मात्र भटके हुए राहगीरों को राह दिखाने का कार्य करता हूँ। इसके अतिरिक्त और – किसी पूजा-उपासना से मैं परिचित नहीं हूँ।” जय-विजय ने लौटकर विधाता को सारा – विवरण सुनाया। सब सुनकर विधाता बोले – ” अन्य कोई हो या न हो, परंतु यह दृष्टिहीन – व्यक्ति निश्चित रूप से स्वर्ग का अधिकारी है। ईश्वर का नाम लेने की अपेक्षा, उसकी – व्यवस्था में हाथ बंटाने का पुण्य ज्यादा है।”